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मह-गूर्जर जैन कवि
(१०३) अज्ञात
(१२२) मेरुतुग सूरीश्वर रास। आदि-केवल कमला केलि कलीय, कमलासनि सोहइ ।
कणय कति झलकंति कंति, तिहुअणि जण मोहइ । अष्ट महा सिद्धि रिद्धी सहीय, बहु लद्धि समृद्धि उ । गोयम सामीय नमीय वीर, जिण सीस प्रसिद्धउ ॥१॥ तस अनुसारिहि ग्यारमउ, अंचल गछ नायक । सुरतरू सुरही रयण जेम, नम (? मन) वंछीय दायक । गाइसु गुरु श्री मेरुसँग, सूरीसर रंगिहि । निसुणउ भवियण भत्ति भावि, रोमची अंगिहिं ।।२।।
मन्त-सिरि गछनायकु श्री सुगुरु मेरुतुग सूरिंद ।
नाम निरंतर जो जपई, तहि घरि नितु आणंद ।।६।। इति श्री गछ नायक श्री मेरुतुगसूरीश्वर रास संपूर्ण । प्रति-पत्र-१५ स्थान-लींबड़ी भडार
प्रतिलिपि- अभय जैन ग्रन्थालय । वि० मेरुतुगसूरि समय-गच्छनायक पद सं० १४४६ स्वर्ग १४७१
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