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अन्त - पढई गुणई जे संभलड, आबूय गिरि
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मह- गुर्जर जैन कवि
चेत्र प्रवाइज हरक गय, सिव सुगह सेरी । तीरथ यात्रा पुण्य ते, पामई मन सुद्धिहिं कहयं सुगुरु जयतिलकसूरि, वाढइ ऋद्धि वृद्धिहि ॥ १७ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
(१०२) जयतिलकसूरि शि०
(११९) श्री नेमिनाथ रास गा० २१
प्रादि- सासण देवति देवि अंबाई, माई चलणे तनु मन लाइ, ध्याई सुह गुरु पाय । नेमिनाथ गुण मण आदिई, गाइस रासा केरइ छंदिइ,
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वंदि यादव राय ॥ १ प्रन्त - श्री जयतिलकसूरि सुपसाई, नितु मन वंछित कवित करांई, जाइ पातक दूरो ।
मन शुद्धि जे गाई रासउ, भवि भवि साम्ही तम्ह ते दास, श्रासकि जस कपूर ॥२१ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
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(१२०) सोपारा वीनती गा० १९
आदि-पढम जिरणेसर पय पणमेवी, सरसति सामणि चित्ति घरेवी,
सेवी सुहगुरु पाय ।