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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयतिलकसूरि पंद्रहवीं सदी अन्त-सकल लोक मनि आणंदण पूरउ, सूरउ वर तप तेज । भवीयण जण जिम तम्हि चिरनंदउ, वंदउ मन नइ हेज ॥८ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय (१०१ ) जयतिलकसूरि ( ११७ ) गिरनार चंत्य परिपाटी गा० १८ आदि - सरसति वरसति अमियज वाणी, हृदय कमल प्रब्भिंतर आणी जाणीय कविर्याणि छंदो || गिरिनार गिरिवरहज केरी, चेत्र प्रवाड़ि करुउ नवेरी, पूरीय परमाणो ।।१ [ ७३ अन्त-हुँ मूरख पणइ अच्छु अजाण, श्री जयतिलकसूरि बहु मानं, मानु मन मांहि एहो । पढई गणइ जे ए नवरंगी, चेत्य प्रवाड़ी प्रतिहि सुचंगी - चंगीय करई सुदेहो ॥१८ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय ( ११८) आबू - चैत्य परिपाटी गा० १७ आदि- चरण कमल पणमेत्रि भत्ति, सिरि सरसति केरा । चेत्र प्रवाeिs नमिसु देव, आबूय नवेरा || मण तण वयण ज उल्हसई, जस दरिसण दिट्ठइं । बहु भव अजीय पाव- कम्म, पण निश्चिई नीठइं ||१ For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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