________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
७२ ]
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मरू- गूर्जर जैन कवि
अविहि जेह सिरि कर निसय, निवसय तीन गुण ग्राम । चितामणि सुरतरु समउ, कामगवी जेहनउ नाम ॥७
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
( ६ ) जयकेशरमुनि
( ११५) जयतिलकसूरि चउपई गा ३२
प्रादि- सामिणि सरसति तद पसाइ, नितु मन वंछित कवित कराइ । अम्मनि आज ऊपनु भाउ, भगतिहि वन्निषु सुहगुरु राय | १| गरूया अभयसिंह सूरींद, तास पट्ट उजोयण चंद | तपागच्छ मंडर गुणवंत, सिरि जयतिलकसूरि जयवंत ॥२॥
अन्त - इण परि जे नितु सुहगुरु धुणइ, तेउ चउपइ जे श्रवणिहि सुणइ । जयकेसरि मुणिवर इम कहइ, ऋद्धि वृद्धि मंगल ते लहइ ।।३२।। पत्र० ३-४ से ११ (१६वीं शती लि० भारतीय विद्या मंदिर - बंबई)
(१००) अज्ञात
( ११६) श्री जयतिलकसूरि भास गा० ८
आदि - तपगच्छ मंडण दुरिय विहडण, खंडन सोहन वीर । सुहगुरु गुरूउ नयणे दीठउ, मीठउ गुहिर गंभीर ॥ १
For Private and Personal Use Only
सखि श्री जयतिलक सूरिदो, वांदिवउ अभिनव चंद | आंचली ॥