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अज्ञात
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पंद्रहवीं सदी
(६७) अज्ञात
( ११३ ) २ श्री जयतिलकसूरि भास गा० ९
आदि - नागनयर मुख मंडणउ, पणमीय पहु पास ।
गाइसु सहिगुरु ब्रम्हतणां, जिम पूजइ आस ॥ १ तपागच्छ मुनिवर गहगहई, चंद्रकुल राजहंस । श्री जयतिलक सूरि जीणीइं, मुणि जण प्रवयस ॥२. अन्त - चितामणि सुरतरू समउ, कलि कामघट एउ ।
चितित फल सेवक तणा, देयइ दूसमि सोय ॥८ देशना दुख दच्च उल्हवइ, अभयसिंह सूरि सीसुः । भास पढतां पूजिसि, नितु प्रास जगीस ॥
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
(६८) अज्ञात ( ११४) जयतिलकसूरि भास गा० ७ प्रादि - थंभणपुरवर मंडणउ, पणमीय पास जिण सामि ।
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श्री जयतिलक सूरि गाइसो, नव निधि जहनइ नामि ॥१ गुरु मुनिरयण, जीतउ मोहमयण, नयण निहालिसु श्रापणइ ए । सही ए अतििहं उत्साहो, लीजइ सुकृतलाहो, श्री जयतिलकसूरि उबाहो ॥२
अन्त
- वचन सुधारसि वरसय, दरसय ए सिरपुर माग ।
रयणाधर गच्छ पालइए, टालइए पाप तु लाग ॥६
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