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मरू- गूर्जर जैन कवि
अहे वसंतक्रीडा तीह अति करि, आणंद मुनिनि पूरि । मनरंगि एम बोलि, श्री गुणचंद्रसूरि । १६
प्रकाशित - प्राचीन फागु-संग्रह पृ० ५५-५६
(६६) अज्ञात
(११२) श्री जयतिलकसूरि भास गा० १०
प्रादि- सरसति करिन पसाउ, गणधर तपागच्छ मंडणउ । गाइ जतिलकसूरि, दुख दारिद्र विहंडणउ ॥ १
चालि सखीय गुरु वांदीइ,
रिद्धि वृद्धि सू सविचार जास पसाइ नांदीइ |
हरिपाटि, दिणयर जिम जग विस्तरद ॥२ चालि० प्रचली
अन्त-देव भवनि ध्वज लहलहइं, घरि घरि गूडी उछाह । जिण सासणि वद्धामणउ, श्रावक मनिहि उच्छाह ॥६ इण परि सवे सुहासिणी, वंदीय दियइ श्रासीस । पास पसाइ श्री संघ, प्रतपत्र कोड़ि बरोस । १०.
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प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय