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मरू-गूर्जर जैन कवि कीघउ कन्हमुनीसर, गणहरू जयसिंहमूरि। फागु रे सुणतह गुणतह, पापु पणासइ दूरि ॥५३
प्रकाशित-प्राचीन फागु-संग्रह पृ० १७-२१
(६३) राजतिलक (? विजय तिलक) (१०९) जंबूस्वामी फाग गाथा ६० सं० १४३०
प्रादि-वंदवि वीर कृपानिधि, सानिधि दान अपार ।
पामीय सुहगुरु आयसु, गाइसु जंबकुमारु ।१ मगधदेशमुखभूषण, दूषणरहित निवासु ।
नगर राजगृह राजए, गाजए जगि जसवासु ॥२ अन्त--फागु वसंति जि खेलइ, बेलइ सुगुण निधान
विजयवंत ते छाजइ, राजइ तिलक समान १५६ चउदह तीस संवच्छरि, मुच्छरि मानि विमत्तु जंबुय गुण अनुरागहिं, फागिहिं कहीय चरित्तु ।।६०
प्रकाशित-प्राचीन फागु-संग्रह पृ० २५-३०
(६४) जयशेखरसूरि (महेन्द्रसूरि शि०) (११०) द्वितीय नेमिनाथ फागु गाथा ४९ सं० १४४० आसपास आदि-पणमिय शिवगतिगामीय, सामीय सवि अरिहंत ।
सुर नर नाह नमसिय, दंसिय सयल दुहंत ।१
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