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विनय प्रभ
चौदहवीं सदी
[६]
अन्त- इय भवण भूसण दलिय दूसण, सव लक्खण मंडणो ।
मद मान गंजण मोह भंजण, वाम काम विहंडणो ।। सुर राय रंजणु नाण सण, चरण गुण जय नायको । जिण नाह भवि भवि तात भव मे, बोधिबीजह दायगो ॥२१
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
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(९८) विमलाचल आदिनाथ स्तवन गा०१३ ..
आदि-मुख संमुखं नयपले देन दीठउ, तहे जाणि मो अन्न न अमीय मीठ 3 जदा नंदि हसामि ने पाल लागउ, तदा देव मह मोह नउ द्रोह
भागउ ।।१ अन्त- इम भोलिम सामिनी भगति कीधी,
असंख्यात मू पुण्यनी वृत्ति सीधी। न माग जगन्नाथ हउ किंपि बीजउ, विभो आभव देहि मे बोधि बीजं ॥१३
प्रतिलिपि -- अभय जैन ग्रन्थालय
(८७) अज्ञात (९९) श्री अंतरीक पार्श्वनाथ स्तवनम् गा० ५
प्रादि--जय जिणेसर जय जिणेसर पास जिण नाह ।
अंतरीय माहप्पुहिव, एणि कालि तुह देव दीसइ । सिरि सिरपुर वर तिलय, कित्ति सयलि तिहुयणि सलीसइ । नाम मति सुमरंतयह, दुरिउ पणासइ दूरि ।
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