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मरू-गूर्जर जैन कवि काम-भोग भोगवि तुहुं प्रामिय, मेल्हिवि जंबु कुमारा ॥१ अन्त-प्रभवु चोरु पंचसय परिवारितु जबू स्वामी प्रतिबोधिला । अट्ठ रमणि सउ सुधर्म सामि पासि, संजम भारु तिणि लयला ।।८
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(७४) शांतिसूरि (८४) श्री सीमंधर स्वामि स्तवनम् गा० ८
आदि-जंबू वर दीवह महा विदेह, सणि धणि घणहां सय पंच देह ।
सीमंधर स्वामी विहरमाण. वसहंक-सयर सोवन्न माण ॥१ अन्त–संदेशे पोलग कर देव, ऊमाहउ हीय न मा. ईणि खेत्रि वसंतां खति पूरि, दय मुक्ति भणयं श्री शांति सूरि।।
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(७५) अज्ञात (८५) गिरनार तीर्थ स्तवनम् गा०६ .
प्रादि-गिरि उज्जितह गरि जाइसु, वादिसु नेमि कुमारो।
इय संसारु समुद्द तरेविशु, पाविसु मारेव दुवारो॥१ अन्त-पूरव धरमिणि इउ माणइ प्रभु, वीनतड़िय अवधारि । इसु संसारह खरी निवीनी, प्रावरणु गमरणु निवारि ॥६
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
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