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मरू-गूर्जर जैन कवि
(६६) अज्ञात
(७९) स्थूलिभद्र गीतम् गा० १२ आदि-भरत खेते पाडलिय पुरे नवमु नंदराओ
सकटाहल पूत्तु थूल भद्दो, सो लेइ व्रतु जिणि जुवकालि कंदपु दालियओ रंजिउ राउ मुनि जिणि, विषय सुख अवगनिउ
पंच मुष्टिकु लोचु कियउ, सो नमहु थूलभद्द ॥१॥ आंचली अन्त-गुरु णिय मन्निविसो गयो, निय गुरह पासि ।
आलोवंतउ करुण सरि, अनुमन रहसि सुद्ध भावेण जिणि पंकु पखालिउ, गयउ सो मुणिवर देवलोके । १२
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(७०) अज्ञात (८०) श्री सुदरिसण महारिषि गीतम् गा० १३ प्रादि-उसभुदत्त चंपावरि सेठी अरइ दंत पियकता
सुभगु कुमार उम्ह इसिहिं पालकु मुनि सिंहु कियउ प्रसंगो । कन्नु डुलइ किरि अमिय, पईसइ सुणिवि सुदरिसण
जिन्ह दीठउ से नयण ति धन्ना, मयण करडि हरि लीलो ॥१ अन्त-देवदत्ता गणिका तसु खोभई, ना खोभइ गिरि धीरु । अभया वितरि ठाइहिं खोभइ, तउ हुव केवल वीरो ॥१३
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
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