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अज्ञात
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चौदहवीं सदी
पुण विज्जाहर सुर गणह, जंपइ एहु सुरिंदु | लेवि कलस मा चिरु करहु, न्हावहु वीर जिणिदु ॥ १४
( सं० १४३७ लि० प्रति से)
(५६) अज्ञात (६६) श्री महावीर कलश: गा० २९
आदि - पण मेवि तिजयनाहं, सिद्धत्थ महानरिद अंगरुहं । वीरं गिरिवर धीरं, तस्सभिसेयं थुणिस्सामि ॥ १ ॥ अन्त — जेम सुर सेलि जिरणु हविउ सुर सामिणा, तेम जालउरि विहि-मंदिरे भवियणा । हवहु पुज्जहु थुणहु, भावु धरिणिय मरणे, संति जिम होइ नर, नरवरह तक्खणे ॥। २६
प्रतिलिपि - प्रभय जैन ग्रन्थालय
(५७) अज्ञात
(६७) श्री वीर जिन कलश गा० ५
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आदि - जम्म मज्जणि जम्म मज्जणि, जिणह वीरस्स । पारद्धई सुरगणिण मेरु, सिहरि इ देण चितिउ । किम सहिसइ तुच्छ तणु जल, पवाहु सुर खित्त इत्तिउ । पुणु सुणिउ जिण बलु कलिउ, इउ चितंतु सुरिंदु
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