________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
४४ ]
www.kobatirth.org
------
आदि - जयति जगति सस्वन्न ेमिनाथो विशस्वच्छतममधिक कान्तिः सृष्ट मोहोपशान्ति । उदित विदित चित्रस्फूर्जं दुच्चैश्चरित्र - स्त्रिभुवन जन बन्धुः पुण्य लावण्य सिन्धुः । १
(५४) अज्ञात
(६४) श्री नेमिनाथ स्तवनम् गा० २३
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
――
अन्त तं देव देव दे विन्दे, किउ जय जयकास्त । सवि इन्द्राणी जीतउ जाणिउ, कभहि मंगल चारुत । सव्वह वीरह ऊपरि, वंदू प्रास मुदतुत | पूजउ पूजउ नेमि कुमारू, निव्वुइ कंतुत ॥२३
मरू- गूर्जर जैन कवि
अन्त- -ताम जिणवरु मणवि सुरनाहु ।
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
(५५) अज्ञात
(६५) श्री वीरजिन कलश गा० १४
आदि - नमिर सुरवर पवर सिरि मउड़ मणि किरण, निम्मल बहुल कायकंति । सोहियस सुंदरु संसार घण घणदहण, दुट्टु कंम्म निट्ठवण पच्च । पंचिन्दिय करिवर दलरणु, जम्मण मरण विणासु ।
भाइ जिदिह पयकमलु, भावं पणमवि तासु ॥ १
For Private and Personal Use Only
जोड़ेवि कर सिरि घरइ, खमह नाह अतुलिय परक्कम । नव जाण तुज्भ बलु वीर, दमिय कंदप्प दुद्दम ।