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अज्ञात
अन्त
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चौदहवीं सदी
अवर कज्ज सावज्ज सव्वि, वज्जिय कय पुन्नह ।
नवउ कलसु हउ भणिसु तुम्हि, भवियहु प्रायन्नहु ॥ १
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- दप्पण भद्दासण नंदिवत्त, सिरिवच्छ मच्छ तह कलस जुत्त । वर वद्धमाण सत्थिय विसिट्ठ, जिण पुरओ विहिय इय मंगलट्ठ || १० इय सन्ति जिणंदह उवरि गिरिदह, अमरवद्दहि किउ न्हवण जिम तिव तुम्हिवि म्हावउ जिम सुहु पावहु, 'राम भद्द * पभइ
इम ॥ ११
श्रादि-संति नाह२ जम्मि प्रभिसेउ |
(५३) अज्ञात
(६३) श्री शांतिनाथ कलश गा० ६
* 'पाठान्तर राच भद्द. ' प्रतिलिपि - प्रभय जैन ग्रन्थालय
[ ४३
सिहरम्मि मणिहरि विमल बहल रयण रवि कंति सुंदरि । तियसिद सयलिवि मिलिवि कुणहि भत्ति विहिसारु मंदिर || नज्जइ लोयह विहि परह, विहि दरिसणइ निमित्तु परिवारच्छर नट्ट भरु, तहि पयड़हि सुपवित्त ॥ १
प्रन्त - तदणु मग्गिण सह सुवियड्ढ, जिण संति मज्जरण करहिं । विहि जिणंद भवरमि संपइ, तिण सयल सुविहिहि । कलियड चिथ कालि सुह, फलिय संसइ (सिद्धि) 1 पयड़ पथंड पहावधर, लद्ध समग्ग समिद्धि ||६
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प्रतिलिपि - - अभय जैन ग्रन्थालय