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मरू-गूर्जर जैन कवि
कलिल संघट्ट. सुविसट्ट. परिफिट्टए, तेसि भद्दतु निच्चंपि
परिवट्टए ॥११ प्रतिलिपि- अभय जैन ग्रन्थालय
(५१) अज्ञात (६१) श्री वासुपूज्य कलश गा०८
प्रादि-जइ जय२ पह देव वस पुज्जु,
विज्जलपुर सिरितिलउ सयल लोय लोयण सहकरु । जिट्ठ मासि सिय नवमि, मणुय लोय उइन्नु मणहरु तहिं वसुपुज्ज नरेसरह, रज्जु समिद्धिहि पत्त.
गेहु निहाणिहिं बहुविहिहिं, भरिउ सुरेहि निरत्त ॥१ अन्त-एय मग्गिण२ परम विच्छड्डि,
छठे विणु संकमणि न्हवणु रयहि सिरि वासुपूज्जह । कल्लाणय सव्व दिण मंगलिक्क तियलुक्क पुज्जह काहल संख मुयंग तहिं, वायहि मंगलतूर । दसण निम्मलु करिवि जिव, पावह सिव सुहपूरु ।।८
(५२) रामभद्र (६२) शान्तिनाथ कलश गा० १०
प्रादि-असुर सुरिंद नरिंद विंद, वंदिय पय पउमह ।
संति जिणंदह न्हवण समां, वज्जिय छल छउमह ।।
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