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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org atara सदी तस्स रिसहस्य भसीइ मज्जण विहि, foपि पभणेमि तुम्हि कुणह सवणातिहि ॥ १ अन्त-विमल गिरि मंडणं नाभिनिव नंदणं, जमणारदणं कम्म निक्कंदणं । तयस्तु सारेण भो न्हवउ भवियण जणा, सिव वहू होइ जिमु तुह उच्छ्रय मणा ॥५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे (५०) अज्ञात (६०) श्री चन्द्रप्रभ स्वामि कलश गा० ११ आदि - देव देविद विदेण गिरि मंदरे, देव चंदप्पहस्सामिणो सुन्दरे । जम्म मज्जण महो जह समारंभिश्रो, किंपि जंपेमि संपइ तहा विहिप्रो ॥१ आगया तत्थवित्थिन्न सुर सत्यया, वियड़ मणि मउड़ दिप्पंत तयणु [ ४१ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय गयण तम कंड खंडण पहा मंडला, मंडिया खंड तरतु खंडसा तरमत्थया । अन्त - गुल गुलिड के विकिवि घणघणं हेसियं किवि करहि केवि तिन्निवि सुरासंतयं । केवि हल बोलु किवि उपफलंती तथा, केवि पूरंति नंदि For Private and Personal Use Only खडला ||२ समादिया ॥ १० ॥ सारिणी सावया मज्जणं, चंदपह सामिणो कुणहु दुह तज्जणं ।
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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