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अज्ञात
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atara सदी
तस्स रिसहस्य भसीइ मज्जण विहि, foपि पभणेमि तुम्हि कुणह सवणातिहि ॥ १
अन्त-विमल गिरि मंडणं नाभिनिव नंदणं,
जमणारदणं कम्म निक्कंदणं ।
तयस्तु सारेण भो न्हवउ भवियण जणा, सिव वहू होइ जिमु तुह उच्छ्रय मणा ॥५
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जे
(५०) अज्ञात
(६०) श्री चन्द्रप्रभ स्वामि कलश गा० ११ आदि - देव देविद विदेण गिरि मंदरे, देव चंदप्पहस्सामिणो सुन्दरे । जम्म मज्जण महो जह समारंभिश्रो, किंपि जंपेमि संपइ तहा
विहिप्रो ॥१ आगया तत्थवित्थिन्न सुर सत्यया, वियड़ मणि मउड़ दिप्पंत
तयणु
[ ४१
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
गयण तम कंड खंडण पहा मंडला, मंडिया खंड तरतु खंडसा
तरमत्थया ।
अन्त - गुल गुलिड के विकिवि घणघणं हेसियं किवि करहि केवि तिन्निवि सुरासंतयं ।
केवि हल बोलु किवि उपफलंती तथा, केवि पूरंति नंदि
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खडला ||२
समादिया ॥ १० ॥
सारिणी सावया मज्जणं, चंदपह सामिणो कुणहु दुह
तज्जणं ।