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अज्ञात
चौदहवीं सदी
[३७
चउवीसह तित्थयर सुप्पहाइ जे थुणहिं अणु दिणु । ते संसारि महा जलहि, उत्तारहिं अप्पाणु, पावह दुक्खह खउ करहि, “संति भद्द, कल्लाणु ॥२५ विहाणांका चतुर्विशति जिन नमस्काराः लिखिता श्री पालापुरे आनंदमूर्ति मुनिना।
(सं० १३८५ लि० संग्रह प्रति ज० भ० क्र. १३२६)
(४३) अज्ञात (५३) चतुर्विशति तीर्थकर नमस्कार गा० २५
आदि-देव तिहयण पणय पय कमल कमलायर ।
कय चलण कमल गब्भ समवन्न सामिय रिसहेसर। पढम जिण पढम धम्म धुर धरण धोरियं । अट्रावइ गिरिवर सिहर सेहर पुरिस पहाण । ताह तहट्ठिय भव जलहि जे न किय तुह आण ॥१
अन्त-इय निम्मल गुण गण वद्धमाण, पहु पणय पाय कमलाणं । आ संसार सेवा महु दुज्ज जिणिंद चंदाणं ॥२५
सं० १३८५ लि. सग्रह प्रति जै० भ०
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