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मरू-गूर्जर जैन कवि अन्त-गणहर सुहम्म सामिय पमुह, दुप्पसहसूरि पज्जते । वंदे कय कल्लाणे, गुणप्पहाणे गुणविहाणे ॥६
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(३३) हेमतिल कसूरि शि०
(४३) श्री हेमतिलक सूरि संधि गा० ४० आदि-पाय पणवि सिरि वीर जिगदह, अनु सिरि गोयम सामि मुणिदो।
हेमतिलय सूरिहिं गुण लेसो, संधि बंधि हउ किंपि भरणेसो ॥१ अत्थि नयरू नायोरू पसिद्धउ, घण कण कंघण रयण समिद्धउ । तहि निवसइ गंधीय कुल मंडणु, वीजउ साहु दुहिय दुह खडगु ।२ असत तस घरि धरणि पहाणी, सीलि विमल किरि सीता राणी। तासु उयर सरि हंस समाणू, पुत्रु उवन्नउ पुन्न पहाणू ॥३ दोलउ नामु निरूपम लखणु, सरल सहावु विणीय वियक्खरणु । कंचण गोर सरीर प्रमाणू, दिणि दिणि वढइ सोहग सारू ।।४ सो कलिय कलागमु, रूवि मयण समु, चउद(१४) वरिस नउ जं
थियउ। तं जण मण मोहह, महियलि सोहइ, सुर कुमारू जं अवयरिउ ॥५ बड्डइ गछि वाइयदेव सूरि, अणुकमि सिरि जयसेहर सूरि ।।
सुविहिय विहिहिं विमुहि विहरता, अन्न दिवसि नायउरि पहूता ॥६ अन्त-साठि(६०) वरिस व्रतु पालिउ निम्मलु, सात जात करि लियउ
__चरण फलु मम्ह सव्वाउ वरिस चहत्तरि(७४), मास तिन्नि ते पूरिय सस्वरि ।३७
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