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जिनचन्द्रसूरि शि० चौदहवीं सदी
[२९ (३१) चारित्र गणि (श्री जिनचन्द्रसूरि शिष्य)
(४९) श्री जिनचन्द्र सूरि रेलुया गा०९
आदि-जिण प्रबोध सूरि राय पट्टिवर कमल दिवायरु
पडिउ सुद्ध जय धम्मु। देवराज कुलि गयण चंदु सिरि
कामल पउमिणि कुखिहिं हंसु उपन्नु ॥१ अन्त-सिरि जिणचंदसूरि जुग पहाणु जे गायहि
भाविहि भगतिहि चितह रंगि। 'चारितु' निम्मलु पालिविण त नर अनु नारिय पावई सिव सुह- रंगि ॥६
रेलुया भास श्री जिनचन्द्रसूरि पदानि सर्वांण्यपि चारित्र गणि कृतानि ।
(३२) ख० जिनचन्द्रसूरि शि०
(४२) युगवर गुरु स्तुति गा. ६ आदि-देधाकुलि सिरि देवराय, मंती सुपसिद्धउ ।
कोमल देवि कलत्त तासु, सील हि सुपसिद्धउ । ताण पुत्तसिरि खंभराउ, बालुवि गुण सायरु । लइय दिक्ख गुरु राय पासि, सिक्खइ किरिआयरु ।। जावालि नयरि वीरह भुवणि, जिणपबोह गुरु चक्कवइ । जिणचंदसूरि तसु नामु परि, गुरु उच्छवि निय पय ठवइ ॥१
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