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मरू-गूर्जर जैन कवि पउम रयण मुनि इम भणए सो मण बंछिउ फलो दुलहो तुरिउ
- लहेइ ॥१०
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(२७) ठ. फेरू (खरतर जिन चन्द्रसूरि भक्त) (३६) श्री युग प्रधान चतुः पदिका गा. २८ सं १३४७ कन्नाणा
प्रादि-सयल सुरासर वंदिय पाय, वीर नाह पणमवि जग ताय ।
सुमरे विणु सिरि सरसइ देवि, जुगवर चरिउ भणिसु संखेवि ॥१ अन्त-संघ सहिउ फेरू इम भणइ, इत्तिय जुग-पहाण जो थुणइ ।
पढइ गुणइ निय-मणि सुमरेइ, मो सिवपुरि वर-रज्जु करेइ ॥२६ तेरह सइतालइ (१३४७) महमासि, राय-सिहर वाणारिय पासि । चंद्र-तगुरुभवि इय चंउपइय, कन्नाणइ गुरु-भत्तिहि कहिय ॥२७ सुरगिरि पंचदीव सब्वेवि, चंद सूरि गह रिवख जिवेवि । रयणायरधर अविचल जाम, सघु चउव्विह नंदउ ताम ॥२८
( प्रकाशित राजस्थान भारती वर्ष ६ अ. उ. ४ ) प्रकाशित पत्राकार-जिनदत्त सूरि ज्ञानभंडार सूरत
प्रकाशित-रत्नपरीक्षादि ग्रंथ सप्तक वि० इस कवि के द्रव्यपरीक्षा ( मुद्रा शास्त्र ), धातोत्पत्ति, रत्नपरीक्षा, गणितसार, वस्तुसार और ज्योतिषसार प्रादि प्राकृत भाषा के ग्रंथ उल्लेखनीय हैं।
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