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पद्मरत्न चौदहवीं सदी
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प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय जिन प्रबोध सूरि का प्राचार्यकाल सं० १३३१ से ४० तक का है
(३४) जिन प्रबोध सूरि बोलिका गा० १२ आदि-तिय लोय सामिणि हस गामिणि, देव कामिणि पणमिया ।
अन्नाण वल्लरि दलण कत्तरि, मणि धरेविणु सारया । सिरि सुगुरु जिरणेसर सूरि पट्ट, गयण भूसण दिनमणी
संथुणिसु सिरि जिण प्रबोध सूरि गुरु, भक्ति गुरु चूड़ामणि ॥१ अन्त-जह तुम्हि रुद्दह भव समुद्दह, पारु वंछहु भविजणा ।
जिण प्रबुद्ध सूरि बोहित्थ गिन्हहु, ताऊ हो निच्चल मणा ।। लघेवि वेगिण जिमु भवोयदि, जिट्ठि पुरु पावहु थिर । इमु सोममुत्ती भणइ तसु पय, भत्तउ वपरं वरं ॥१२
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
(२६) पद्मरत्न (३५) श्री जिन प्रबोधसूरि वर्णन गा० १० आदि-पुहवि पहाणइ थाराउद्रि धण कणय समिद्ध ए । जायउ जो जगिसारु श्रीचन्द कुलि गयणि भाणु सिरिया देवि कुखि उप्पन्नउ गुणह
भंडारु ॥१ अन्त --एसउ गुरु जिण प्रबोध सूरि जो पणमए, आविचल भाविहि जो सुमरेइ ।
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