________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४ ]
मरू-गर्जर जैन कवि (२५) सोममूर्ति
(३२) गुरावली रेलुआ गा० १३ आदि-वसहि मग्गु जिणि पयड करि सहि अणहिल पाटणि वाईय जगि
जस ढक्क । सो जिरणेसर सुरि गुरु रयण मणि झायहिं जे नर ते ससारह
चुक्क
।।१
नर जुग पहाण गुरु चरिय हारु निय कठि ठवउ तिय लोय सारु ।
ए मुक्ति रमणि जिमु तुम्ह वरेइ ॥ आंचली ।। अन्त ----एह गुरावलि जो पढइ जो मणि अवधारइ रगिहिं जो गायइ । सोममुत्ती गणि इय भणइ सो नरु संसारह दुहह जलंजलि देइ ॥१३
मूल प्रति जै० भ० प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय वि० सोम मूत्ति रचित जिनेश्वर सूरि संयम श्री विवाह वर्णन रास हमारे ऐ० ज० का० सं० में प्रकाशित है जिसका समय सं० १३३१ के लगभग है। अन्य रचनाओं के लिए दे० ज० गु० क. भा० १ पृ० ७ भा० ३ पृ. १४७५ ।
(३३) श्री जिन प्रबोध सूरि चच्चरी गा० १६
आदि --विजय उ विजयउ कोड़ि जुग जिन प्रबोधसूरि राउ ।
विप्फुरत वर सुरि गुण रयण अलकिय काउ ॥१ अन्त --- जिण प्रबोध सूरि गुरु तणिय जे चाचरि पभणति ।
सोममुत्ति गणि इम भणइ पुण्ण लच्छिति लहति ।।१६
For Private and Personal Use Only