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लक्ष्मी तिलक
चौदहवीं सदी
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चौदहवीं शताब्दी (२४) लक्ष्मी तिलक (ख० जिनेश्वर सूरि शि०)
(३१) श्री शान्तिनाथ देव रास गा० ६०
सं० १३१० लगभग
आदि--- सति जिरणेसर चरण कमलु कमलह आवासू ।
उत्त सिय निय उत्तमग सुरहियदस आस् । सवण महू मवु चरिउ तासु विरइमु संखेवी।
नाचहु भवियह भाव सारु सिंगार करेवी ।। १ अन्त-- एह रास जे दिति, खेला खेली अइ कुसल।
बंभसति तह संति, मेघनादु वि खेतल करउ ॥५८ एहु रासु बहु भासु, लच्छितिलय गिणि निम्मयउ । ते लहति सिव वासु, जे नियमणि ऊलटि दियहि ॥ ५६ महि कामिणि रवि इंदु , कुन्डल जुलिण जास हइ । ताम सति जिण चदु , अनुइउ रासुवि चिरुजयउ ।।६०
प्र० सम्मेलन पत्रिका भाग ४७१४ वि० उपाध्याय लक्ष्मीतिलक बड़े विद्वान थे। इन्होंने स० १३११ डाल्हादनपुर में प्रत्येकबुद्व चरित्र (ग्र० १०१३०) और स० १३१७ जालौर में श्रावक धर्म प्रकरण (स्वगुरु जिनेश्वर सूरि कृत) वृहद वृत्ति (ग्र• १५१३१) की रचना की।
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