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अमर प्रभसूरि शि० तेरहवीं सदी
[ २१ (२२) अमर प्रभसूरि शि० (धर्मसूरि पट्ट पाणंद
सूरि शि०) (२९) संख वापी पुर मण्डव श्री महावीर स्तोत्रम् गाथा २१
आदि -- सिरि सिद्धत्थ नरेसर नंदण गुण निलय,
पणय भवियण जण देसिय सासय पय । दुरिय दुरत दबानल विज्झावण जलय, तिहुयण मण आणंदण वीर जिणंद तया ॥१ जण मण चिन्तिय पूरण सुरतरु समचरण पुव्व भवंतर संचिय कलिमल अवहरण । संखवाविपुर मडण खडण भव भयह,
वद्धमाण जिणवइ जय पामिविय परमसुह ।।२ अन्त-अवणि वर रमणि रमणीय सुर सुन्दरं,
सुर विमाणुव्व अवयण्ण मिह सुन्दर संखवावीय वर गुट्ठि कारावियं, जयउ जिण भवणु मुत्तुग मंडव जुयं ।।४ वाइ गइ राय निछलण पंचाणणो, धम्मसूरित्ति उद्धरिय जिण सासणो सेण सिसि संखवावियू सुपइटिओ, जुगल निहि वरिसि (११९२) वीर जिण सामिग्रो ।।५ भत्ति उल्लसिय घण पुलय पुलय कलिय यंगया संखपुर पवर सिरि तिलय मिह जे सिया वद्धमारण जिण थुणइ ते वंछिया झत्ति पावंति निम्भति सह सपया ॥६
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