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कवि छल्ह
तेरहवीं सदी
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(१६) अज्ञात (२६) श्री वीर तिलक चौपई गा० १२
आदिवास पुज तित्थ करु देउ, जसु तणि कला नं लब्भइ छेउ ।।
विज्जलपुरि विहि चइतिणि वेसु वीर तिलक खेतल न उ वेसु ।।१। अन्त - नेउर रुणरुण झणकारु, वीर तिलक गुणवंतु अपारु ।
गेवरु नच्चइ मज्झिम रयणि, वासुपुज्ज परमेसर भुयणि ।।१२।। निसुणहु वीर तिलक तणउ चरिउ, सुख संपइ हुयइ नाय इ दुरिउ ॥
अांचली ॥ सं० १४३७ लि० प्रति जैसलमेर भंडार
(२०) कवि छल्ह
(२७) क्षेत्रपाल द्विपदिका मा०८ आदि--सुम्मई डहडहंतु अइसहउ गरुयउ सद्द. नहयले ।
घुम्मइ सघणघोरु जण भोसण मेहल र वउ महियले ।। रुगु झुणु रुणु झणंत ने उर सरु पाया लघु पहुत्तउ ।
नच्चइ खित्तवालु जिण मदिरि बहु पाणंद जुत्त प्रो।।१।। अन्त-जाइ सु पंथ कुसुम सेवित्तिय जो तुह भत्ति पूयए ।
विलसइ सुज्जु सुक्खु बहु विह परि दुक्खु न होइ तहक्कए । दिव्वाभरण दिव्व देवंग समीहिय तासु संपए । जो तुह पढइ सुणइ खित्ता "हिव इम कवि छल्हु" जपए ।।८।।
स० १४२५ के लगभग की लि० प्रति
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