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१८ ]
मरू-गूर्जर जैन कवि
विहि संघुस नंदउ दिणण दिगु, वीर तित्यु थिरु होउधर । पूजन्ति मणोरह सयल तहि कव्वट्ठ पढंति नारि नर ।।८।।
इति षटपदम् [प्र० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० १ ]
(१८) अज्ञात (२५) अंबिकादेवी पूर्व भव वर्णन तलहरा गा० ३०
आदि -- .......................... तिलोत्तम रंभ रइ ॥४॥
सीलिहिं जणुसीता दवदति राणी, अजरणं सुदरी रायमइ ।
सोहग सुदरि जगह पहाणी, जाविहि निम्मल निम्मविय ॥५॥ अन्त–बुहयण वयणह किंपि सुणेवि, किंपि मुणिय निय मइ बलिण ।
चरि उ तुम्हार उ वनिउ देवि, पूरि मणोरह अम्ह तणइ ।।२६ । ने मि जिरणेसर चरण अभोय, महुँयरि अबिक देवि तुहुं। संघह सानिधु करि सुहभौय, देहि मणछिय उदरिद्धि ॥३०॥
जिनप्रभसूरि परम्परा की सं० १४२५ लगभग लि० प्रति, बीकानेर वृहत् ज्ञान भण्डार
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