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मरू-गूर्जर जैन कवि (२१) श्री महावीर बोलिका गा० ८
प्रादि : ता गुज्जर नारिहि इह संसारिहि मणि हूयउ पारणंदु ।
ता तिसलह नदणु कम्म विहिडण वंदह वीर जिणिदु ।। ता कणयह कलसू अमियह वरिसू सु भइ मणहर दडु ।
ता सहियह दिट्ठइ पाऊ फिट्टइ रोरु जाइ सय खंडु ।। १ अन्त : ता उदय विहारू सारोद्धारू कारिउ कुलधरि मति ।
ता असुर सुरिंदा खयर नरिंदा पक्खिवि सीम् धुणं ति । ता तास पइट्ठा कियइ विसिट्टा सीस धुणाति उ इदु । ता धम्म कहतू जगि जयवंतू जिणिसर सूरि मुर्णिदु ॥८
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय वि० उदय विहार के उत्तर के कुलधर का ऐतिहासिक उल्लेख ।
(२२) श्री जिनेश्वर सूरि (मदन युद्ध) चन्द्रायण गा० १२ आदि-हेलि पंचकुसुम सरि विसरु नमिभ्जइ करि घर वर सारंगो
मइ समरि जिणीवउ सूरि जिरणेसर गुण ठवि नण सुचंगो रइ भणइ मयण सुणि सत्त, कहं तुह मिल्हि करह को दंडो
सो अजउ न जित्त, केवि जिप्पइ जिणीसर सूरि पयंडो ॥१॥ अन्त-रइ वारिउ न हिउ संचरिउ घणु धरि करि उन्भड़ मयणु । . तं हणइ जिरणेसर सूरि गुरु, गहिवि बंभु खग्गह रयणु ॥१२ ।
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय
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