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श्रा० लखण
तेरहवीं सदी
[ १५
(१९) श्री वासु पूज्य बोलिका गा० ४ र० विजलपुर ..
आदि : ता उत्तर दिसिहि नारि ज हुँदी, चल्लिय मणि विहसति ।
ते चड़िय तुरगिहि पवण वेगिहि, मिल्हवि घरु पइसति ।। सा हरषिय चितिहि बह सुपवित्तिहि. विज्जलपुर वर आय ।
ता पहु सुपुज्ज वदावि प्रियं मह, ते पणमहि पहु पाय ॥१ अन्त : ता पच्छिम रभ कंठ रयणारि जे हुंती निय ठाणि ।
ता कर जोडि वि निन्नवउ नरिंदह पहवेगेण पराणि ।। ता वासपुज्ज विजलपुर नयरह थपिउ जिरणेसर सूरि । ता मोपहु पणमतिल्ह पसंसइ दुरि उ पणासइ दूरि ॥४॥
(सं० १४३७ लि. प्रति से)
(२०) शांतिनाथ बोलिका गा० ४ र० श्रीमालनगर
आदि : ना उत्तर दक्षिण पूरब पच्छिम बह दिसि हंती नारि ।
___ ता कर जोड़े विगा नाह नमेविरणु वयगा इक्कू अवधारि ।।
ता दूसम काली पहु सिरमाली अदबुदु सणियइ तित्थु । . .
ता इहि भवसायरि दुक्ख हायरि भवियह जण बोहित्थु ।।१।। अन्त : ता धन पुनवती बहु गुणवंती अमर पसंसहि सग्गि ।
ता दाणु दियावहि महिम करावहि सुगुरु वयणि विहि मग्गि ।। ता सिरमाळह मडणु पाव विहंडणु थप्पि जिणसर सूरि ता भवियहु वंदहुजिव चिरुनदहु दुरिउ पणास इ सूरि ॥४॥
प्रति - १५ वीं शती की संग्रह प्रतियों में
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