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मरू-गूर्जर जैन कवि (१६०) अज्ञात (सुदर सूरि शि०)
(१८९) विमल मंत्री रास गा० ४४ (?) आदि-अप्राप्त अन्त -भास
थापिउ विमल दह अडसि वरिसे, बावीस प्रासाद चडाउलि देसे । अनइ तिण कीध संघ सपरिवारि, सात जात्र से जि गिरनारि ।।४३ जां ध्र निश्चल तांह एह नंदउ, गुरु श्री सुदर सूरि वांदउ । एह रास जे भणइ भणावइ...रि सवि सुख आवइ ।।४४ इति विमल (मत्री) रास संपूर्ण संवत् १५१३ वर्षे श्रावण ३ दिने पूज्याराध्य वाचनाचार्य पं. जयवीर गणि शिष्य सुमतिवीर गणिना लिखितः सुश्रावक श्रे. महिराज भणनाथं ॥छ।। शुभं भवतु ॥
. पत्रांक० वां, अभय
(१६१) शांतिसूरि
(१९०) श्री अर्बुदाचल हीयाली गा० ६ आदि-विमलदंड नायक नी वसही, सोजि अष्टापदि देउ।
न्हवणइ नीरि निरमल थाइजि, जइ कोइ जाणइ भेउ ।।१ अन्त -नहीलि घण गाजतु संभलि, कायर कंपइ देहइ ।
बारहमास सदा फलदायक, सुरह उ अविचल गेह ॥ सही. ए० ।५।। सांतिसूरि भणइ अम्ह होआली, जे नर कहइं एह ।। झटकई झलहती ते पामइं, जाण मांहि जगि रेह ।। सही ए० ॥६॥
प्रति अभय
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