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अज्ञात
पंद्रहवीं सदी
[ ११५
संति करणु संसारे । कणय कलस धयवडिहिं मणोहर, तुग सिहर प्रासादिहिं सुदर,
जिणवर जुगति जुहारे ॥१ मूल मंडपि छई बहु जिण पडिमा, पूजइ भवियण गरूई महिमा,
गरिमा संति जिणिंद । संधु करइ नितु नवा महोच्छत्र, जिन गुण गाय... अन्त- x x .
त्रुटित प्रति• अभय
अन्त
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(१५६) अज्ञात (१८८) जीराउलि वीनती गा० ११
आदि-करू सेवना देवना पाय लागी, इलइ वार लागी नमू सीस नामी कहूं सतिहु जन्म जीतु अम्हारउ, जगन्नाथ जीराउलउ जई
- जुहारउ ॥१ अन्त- इसि छंदि पाणंदि सुदीस राति, पढई एक भावि भजंग प्रयाति महा दुख संसार ना पास छुट्टई, इस सत्य जाणी कहिउ जोति
बूट्टइ ।।११ प्रति० अभय
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