________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४]
मरू-गूर्जर जैन कवि
(१५६) अज्ञात (१८५) सुभाषित दोहि १४
प्रादि-जिणवर देवु सुसाह गुरु, जस हीयड़इ जिण धम्म ।
सव्व कम्मु जयणा करइ, तस हइ सफल उ जम्म ॥१ अन्त-जीवदया साचउ बयण, पर धन जे न हिणंति । सीयल ज पालइ एक मनि, ते सहि सुख लहंति ॥१५
प्रति० अभय०
(१५७) अज्ञात (१८६) योगी वाणी गा०५
प्रादि-सीयल कच्छोट्टीय मोरीय रे, जोगी संजमि पाउ पाए ।
अठ कर्म ध्यानि दहं रे, अवधू भस्म अधूलियत अंगे । अन्त- द्रढ सम्यकित मनि धरू रे, भद्रीया ध्यायं देव आदिनाथो । जिणह भगत भाव कर बोलइ बुझउ नाथ पंथो ।५
प्रति० अभय
प्रति
(१५८) अज्ञात (१८७) सोधति नगर शांतिनाथ स्तवन (अपूर्ण) प्रादि-सोपति नयरिहिं महिमासागर, ओबि मूरति श्री संति जिणेसर
For Private and Personal Use Only