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अज्ञात
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पन्द्रहवीं सदी
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जमं जागती व जोइ वानी, वसई वासना तास दसइ न वानी ॥१
राजल कंत रूडउ । सुद्धिदं जगनाथ
अन्त-मनि मानवउ एंड संसार कूड़उ, सदासेविवउ इसी मासनी बास (तास पूजद्द, जको भवा
(१४५) अज्ञात (१७४) बारह व्रत चउपई गा० १९
पूजइ ॥५ प्रति० प्रमय ०
श्रादि - वंदिवि वीरु भैविय निसुरोहु, प्रागमि कहिउ जिणेसर एहु । पणउ जिणेंवर धम्म महंतु, वारह व्रतह मूलि समकितु ॥ १ अखर एक न पास पारु, निसणहु धम्मिय धम्मविचारू । सुकृत प्रभाविहि सुगति होइ, सासय, सिवसूह पामइ सोइ ॥ २ अन्त - सती एक सहीजइ नारि, दिन्तु दानु को मास चियारि । कोसंबी नयरी सुविसाल, जगि जयवंती चंदण बाल ॥१८ बार व्रतं श्रावक संभलउ, भाव भगति मनु अविचल घरउ । सबउ वयण उ सउ कोइ, जीवदया विस्तु धरमु
न होइ ॥ १९ प्रति० प्रभय०
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( १४६ ) अज्ञात
( १७५) सुगुरु समाचारी गा० ३२
प्रादि--दल हल हठि माणस जम्म, कीजय निरमल जिणवर घम्भ |