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मरू-गूर्जर जैन कवि
गजपद जलि नेमिइ न्हवीय अंग, प्रम पूजीय पूरिसु मनह रंग । भावि भगतिहि भणेसिई एउ भास, सिरि नेमि पूरेसिइ तीह
मास ॥१७ प्रति प्रभय.
(१४३) अज्ञात
(१७२) गिरनार वीनति गा० ११ मादि-हरषु माह नही हीयहइ किमइ, म मन गिरनारि घणूउ
रमह । लडह लोचन नेमि नमस्कर, जिम न चउगइ मांहि वलि फिर॥१ अन्त-विषइ वइरी नउ मदगिउ गली, जिस्यइ आवइ पाप न मू वली। मयण मल्ल तणउ मझु भउ किसउ, जउ जिनेश्वरइ मनि ह
वस्यउ ॥१० देवी सिवानंदन नेमिनाथ, राजीमति वल्लभ विश्वनाथ । माग नही ग्राम न सिद्धि वासु, मू देव (देव) देजे निज पाय
बास ।।११
प्रति. अभय ..
(१४४) अज्ञात (१७३) श्री नेमिनाथ वीनति गा०५ .
मादि-मली भावना भेटिवा मेमि पाया, ही उलटर मानवी एन माया ।
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