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अज्ञात
पन्द्रहवीं सदी
[ १०५
(१४१) रत्नाकर मुनि
(१७०) श्री नेमिनाथ वोनति गा० १० मादि-गिरिनार गिरिप्रवर मौलि, बाखई पुरि मंडणज भो।
धन्ना ते नर नारि, नमइ नेमि जे निम्मल उ प्रो॥१ कज्जल कति सिरीर, सोहग सुदर निमि जिण ।
करणासायर धीर, केवलि लच्छीअ केलियण ॥२ अन्त-सावीय सहस्स छत्तीस, लख ठिनि तह नेमि जिण ।
वास सहस्स सम्वाउ, सिव करि सामिय सिव रमण ॥ इसु उ ज नेमि जिणंद, मुणि रयणायर कित्ति धरो। चउविह संघउ देउ वर मंगल सो मुत्ति वरो ॥१०
प्रति० अभय रत्नकर दे० जन० गु० क० भा० १ पृष्ठ ४१ ।
(१४२) अज्ञात (१७१) श्री गिरनार भास गा० १७
आदि-सही सोरठ मंडलि जाईयइ, राजलि वर रंगिई गाईयइ ।
जय जून इगढ़ि जोगादि देव, वीर पास जिपेसर करउ सेव ।।१ पोलि वुलीय सोवन रेह तीर, सीयल जल निम्मल प्रय गंभीर ।
तरुयर तलि दीसह विसम घाट, रवि किरण न लागइ तीण वाट ॥२ अन्त-दीसइ दुह दिसि तुग शृंग, सहस्सं बलस्स वण पमुह चंग। .
निहु भूयणे उपमा नहीय जास, गगनाचल छोडहि भवह पास ॥१६
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