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मरू-गूर्जर जन कवित (१६१) श्री चउबीसवटा पार्श्वनाथ स्तुति गा० ४
प्रादि-सयल सुहकारणो भविय जण तारणो, . नाम गहणेण दुह दुरिय निळारणो।
नयरि नायरि जसु अधिक महिमा गुणो, ___ जयउ श्री पासु चउवीस वट्टय जिणो ॥१ अन्त-सुद्ध सझत धारति जे देवया, धरण पउमायवइरुट्ठ अंबाइया। धम्म कम्मेसु ते करउ सान्निध्यं, सयल संघस्स पूरंतु सुह संपय ॥४
प्रति० अभय
(१६२) श्री वर्द्धनपुर चैत्य परिपाटी स्तवनम् गा० ९ आदि-गरुअंइ पुरि वधणउरि, सिखर बद्ध भवियणं महिय ।
__सोहइ बहु प्रासाद, दंड कलस धयवड़ सहिय ॥१ .. अन्त-पाराधउ परिहंत, पदमाणंद सुरि इम भणए । ते रिधि वृद्धि जयवंत, जे प्रणमइ जिण प्रहसम ए ।।
प्रति० अभय.
(१३४) अज्ञात (१६३) द्वादश भाषा निबद्ध तीर्थमाला स्तवनम् गा० ३६
प्रादि-पणय सुरेसर नमवि जिणेसर, तिहुयण जण मण कमल दिणेसर ।
उडलोय प्रहलोयह मंडण, तिरिय लोय भव भय दुह खंडण ॥१
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