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अज्ञात
पन्द्रहवीं सदी
[१०१
अन्त-सिव सिरि मणि माला वनिया तित्थमाला, ....... वव गय भव वाला कित्ति कित्ती विसाला। .
सिव सुह फल रुखं देइ तत्तं परुषखं, निहणउ भव दुषखं वंछिय होउ सुक्खं ॥३६ .
प्रति० अभय०
(१३५) अज्ञात (१६४) कोशा प्रतिबोध गा० १५
प्रादि-कमल वयण कोशा भणइ, कहु किन दीजइ दोस।
विणु भटतारह दीहड़ा, ईमइ कीजइ सोस ॥१ सालूणा वालंभ सादु देइ न मयणु हणइसई बाणिसय, राणा थूलिभद्र तूझ विणु, तू विरण रयणि न जाए । चक्रवाकी जिम चक्रवाक विगु दिवस दोहिलड़ा जाए।
में जगु ऊवसुप्रीअ तूझ विणु । चिली । अन्त-कोसा पुण विमासीउ, कीधइ कंत विचारं ।
नाह पसाई पामीउं, समकित सुकृत भंडार ।। १४ सालूणा ।। रिषि बोलइ कोशा समी, नारि नहीं गुणवंति । मनु जाणी मण वल्लही, मिलीय सरीसी कंति ॥ १५ सालणा ॥
प्रति. अभय.
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