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पमानबसूरि . पंद्रहवीं सदी
(१५९) जीरावला वीनती गा० ९ आदि-सोहग सुन्दर पास जिरणेसर, जीराउलिवर नयर नरेसर,
सेस रचिय पय सेव । सफल मणोरह भेटिउ सामी, मन ऊलटि तसु सिखर नामी,
पामीय सुह सय हेव ॥१ अन्त-जीरावलि मंडण दुरिय विहंडण, पास जिणेसर भत्ति भरे । - विनविउ हरिकलसिहिं नवनिधि विलसहि, जे प्रणमई तुह
चलण परे ॥ प्रति. अभय.
(१३३ ) पद्मानंद सूरि (१६०) श्री चउवीसवटा श्री पार्श्वनाथ नागपुर चैत्य परिपाटी
स्तोत्रम् गा० ९ आदि-जय मंगल कारण दुरिय विदारण, भव भय वारण पास पहो । नायउरिहि नयरिहिं भत्तिहिं पूरिहिं, चउवीसवट्टय जिण थुण
हो ॥१. मन्त-इय बहु विह भत्तिहिं विहि सम्मतिहि, पाराधउ जिणवर सयल । श्री पदमाणंद सुरि देसण मणिधरि, सावय कुलु कोजा
सफल ॥ प्रति. अभय
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