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मह-गूर्जर जन कवि (१३२) हरिकलश (धर्म घोष गच्छ
पद्मानंद सूरि शि०) (१५३) कुरुवंश तीर्थमाला स्तोत्रम् गा० १३
प्रादि-अप्राप्त अन्त-[5] य उत्तर देसिहि पुण्य पतिहिं, वंदिय जिणवर जगहिय हरिकलस मुणिदिहिं मण पाणंदिहि, पक्षमाणंदसूरिहिं
सहिय ॥१३ प्रतिलिपि-प्रभय जैन ग्रन्थालय
(१५४) पूर्व दक्षिण देश तीर्थमाला गा २२
प्रादिअन्त- भाविहि नमसिय पुण्य दसिय, जगि पसंसिय जिणवरा ।
सिरि धम्मसूरिहिं गच्छमूरिहिं, भत्ति पूरिहिं सुदरा । हरिकलसि मुणिवरि भाव परि करि, थुणिय सुप्परि सुहकरा
प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय,
(१५५) श्री गुजरात सोरठ देश तीर्थमाला स्तोत्रम् गा० १९
प्रादि-चउकीस जिणवर पणमवि सुदर, हियइ हरषु प्राणेवि घण, .
सिवलच्छी दायग तिहुयण नायक, तीरथ माला थुणउ जिण ॥१
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