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अज्ञात
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पंद्रहवीं सदी
[ ९५.
बिबह संख्या तह गणिय जाणि, छ सहस उसय अडवाणीस मणि । इय नंदीसर वंदीय देव, अन्नवि सासय नमउ ससेवि ।।११
प्रतिलिपि- - अभय जैन ग्रन्थालय
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(१३०) अज्ञात
(१५१) विमलाचल आदिनाथ स्तवनम् गा० २१
आदि-नाभिनरिद मल्हार, मुरुदेवि माडिय उरि रयण । अवगत रूपि अपारु, सामिय सेत्रुत्र सय थणिय ॥ १
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अन्त य पय पंकय सेव, विमलाचल मंडण रिसह । ग्रह निसि पण देव, प्रवर न काई ईलियए ।।२१
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
(१३१) अज्ञात
( १५२) धर्म प्रेरणा दोहा १५
प्रादि - जिणवर देवु सुसाह गुरु, जस हीयड़इ जिण धम्मु । सव्व कम्मु जयणा करइ, तस हइ सफलउ जम्मु ॥ १
अन्त - गंदूसही जे नितु करइ, अविचल मनि पालति ।
ती बीजय भवि देवत्त लहड़, कवड़ - जख जिमु हुति ॥१४. जीवदया साचउ वयण, परधन जे महिति । सील पालइ एक मनि, ते सहि सुख लहंति ।।१५
प्रतिलिपि - श्रभय जैन ग्रन्थालय
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