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मन्त
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प्रादि - चउदह पूरब माहि जो सारु, पहिलउ रिन समरउ नवकारु । भणिसु धम्माधम्म विचारु, जोणइ जीवु तरइ संसारु ।। १ धम्मु धम्मु पभणइ सहुँ कोइ, " धम्म करइ पुण विरलउ कोई । धम्म तणउ तिणि बूझिष्ट सारु, जिह चिति क्रोधु नहीं अहंकारु ॥२ • अज्जव मध्वगुण संजत्त, सवे वार जीव निर्मल चित्त । कोपालि कोवि न दहइ, इणइ करमि मेणूतण लहइ ।।१५
अन्त
मरू- गूर्जर जैन कवि
(१२८) प्रज्ञात
( १४९) धर्माधर्म विचार गा० १६
तपु तपइ भावा भावंति, शुद्धि चित्ति जें दान दीयंति । क्रोध मान माया परिहरउ, इणि परि स्वर्ग लोकि तंचरउ ॥ १६
• प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय
प्रादि- नंदीसरवर दीप मकारि, सासतां तीरत्थ जुहारि ।
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(१२६) अज्ञात (१५०) नंदीसरवर चडफर्ड, गा० ११.
जिहिं अच्छय तिहि आवागमण, सतजोयण' देखय एक भवण ॥। १ इसा भुवनतिहि बावन्न एह, जोयण बहुत्तरि बावन्न ऊंचा नेय । पहुल पणि जोयण पंचास, ते बंदी तर पूरउ श्रास ॥२
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सरवालाइ हिव लेखउ जोइ बार चउक अठतालिस होइ ।
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चिहुँ अंजणगिरि तीरथ व्यारि, इणि परि बावन्न गिणी जुहारि
॥१०