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अज्ञात
पन्द्रहवीं सदी
[१५
१२६ सज्जण सुत
(१४७) श्री पार्श्वनाथ स्तोत्रम् गा० ९ आदि-- भवभय वण गण दहणं, दरिद्द रोगारि दुरिय निद्दलणं ।
- सिद्धि पुर कय निवासं, सयावि सुमरामि जिण पास ॥१. अन्त - इय पासनाह देवं सरिय, सज्जण सुएण अप्पहियः । जो त सरइ तिसझं, सो पावइ बछिह सुहाइ ।।.
प्रतिलिपि-अभय जैन अत्यालय
(१२७) अज्ञात (१४८) श्री चतुर्विशति जिन स्तधनम् गा० २८
आदि-मोह महा भड मय महण, रिसह जिणेसर देब ।
करि पसाउ जिम होइ मम, भवि भवि तुम्ह पय सेव ॥१ भुवण विभूषण प्रजिय जिण, विजया देवि मल्हार ।
भव सायर निवडत मह, राखि न तिहुयण सार ॥२ अन्त-निय अवतरणिहि ताय धरि, लच्छिहि भरिय भंडार ।
अतुल महाबल वीर जिण, जय जय नग...प्राधार ॥२७ चउवीसह जिण संधुवणु, पढई गुणइ बहु भत्ति । ते नर. निम्मल नाण निहि, पावइ सिवसुह झत्ति. ।
.. प्रतिलिपि -- अभय जैन ग्रन्थालय
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