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मरू- गूर्जर जैन कवि
१२४ अज्ञात ( उदयकरण ) (१४५) कयलवाड़ पार्श्वनाथ स्तोत्र गा० १०
श्रावि - जय-जय कयलवाडपुर मंडरगु, पास जिस पाव विहंडस्तु । तिहुयण जणमण नयणाणंदरंतु, संधुरोमि दुज्जण निक्कंदर ॥। १ वाणारसि पइं जम्मि पवित्तिय, वामः कुच्छि सिप्प वर मुत्तिय । आससेण कुल गयण दिवायर, नव कर माण देह करुणायर ॥२ - इय पास जिणवरु पणयसुरतरू, कयलवाड़इ संठिउ । चिरु कालु नंदउ भविय बंदहु, नागराय प्रहिडिउ ॥
अन्त
भव जलहि तार उदयकारणु, सत्त फण सिरि भूमिउ । दुट्टारि नासणु पयड़ सासणु, मिच्छा कलिहि प्रदूसिउ ॥१०
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प्रति० प्रभय०
१२५ अज्ञात
(१.६) श्री नाडुलाई महावीर स्तवनम् गा० ८
अन्त - जय वीर जिणेसर तिजय राय, नडूलाई संठिय नमउ पाय । तुह दंसणि नासइ पाव विंद, जय भवियण नयण चकोर चंद ॥ १ अन्त--नडलाईय मंडणू जण मण आणंदरतु वद्धमाणु जिरणु जेथुणई | तह छिउ सिज्झए भवदुहरु खिज्जए बंमसति होइ उदयकरो 5 प्रति० प्रभय०