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अज्ञात
चौदहवीं सदी
जइ सिद्धि न पावहिं काल जोगि, सह लहहिं तहवि गय अमर
लोगि ॥२४ इय तव उवहाणह संधि पहाणहं, जयसेह (र)सरि सीसि किय । जे पढ़हिं पढावहि अनुमनि भावहिं ते पावहि सह परम पय ॥२५
इति उपधान संधि ।
प्रतिलिपि-अभय जन ग्रन्थालय, बीकानेर :
(१२३) अज्ञात (१४४) श्री कयलपाट मंडल पाश्र्व स्तवनम् गा० ७
आदि -- पास जिणेसर पणमियइ खरतर तणइ विहारि ।
सामल वन्न सुहामणउ । सखि गायउ हे मन चर रंगि । कयल पाटे मुख मंडणउ ए। करहेड़उ हे पास जिणंद पूनिम चद सोहामणउ.
मुझ हियड़इ हे लागु रगु॥१ अन्त -- ग्राससेणि कुल चदल उ वामा उरिहि हस । सोइजि सामि सवि
थुथ्थुणउ । सवि गावउ हे मन च रंगि, कयलपाट मुख मंडणउ ।.. करहेड़उ हे पास जिणंद कयलपाट मुख मंडणउ सखि० ॥७
- प्रति० अभय
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