SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 545
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र कल्पलता व्या०९ त्रयोदशी *सामाचारी ॥२५३॥ पूर्वमुक्तः पाणिपात्रस्य जिनकल्पिकस्य विधिः। अथ पतग्रहधारिणः स्थविरकल्पिकस्य आहारग्रहणविधिरूपां त्रयोदशसामाचारी आहवासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गहधारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्धारियबुद्धिकार्यसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पड से अप्पटिकायंसि संतरुत्तरंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३१॥ (११००) वासावासं पजोसविअस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठुस्स निगिज्झिय २ बुट्टिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवगच्छित्तए ॥३२॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते चाउ. लोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूत्रे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूत्रे पडिगाहित्तए ॥३३॥ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पड़ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए ॥ ३४ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं दोऽवि पुबाउत्ताइं कप्पंति से दोऽवि पडिगाहित्तए, तत्थ से पुवागमणेणं दोऽवि पच्छा Ko-KOTKOIKOKOKO-KO-XOXOXOOK |॥२५३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.034110
Book TitleKalpasutra Kalpalati Tika
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSamaysundar Gani,
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy