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विवेक-चूडामणि
मिट्टीका कार्य होनेपर भी घड़ा उससे पृथक् नहीं होता, क्योंकि सब ओरसे मृत्तिकारूप होनेके कारण घड़ेका रूप मृत्तिकासे पृथक् नहीं है, अतः मिट्टीमें मिथ्या ही कल्पित नाममात्र घड़ेकी सत्ता ही कहाँ है ? केनापि मृद्भिन्नतया स्वरूपं
घटस्य संदर्शयितुं न शक्यते ।
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अतो घटः कल्पित एव मोहान् मृदेव सत्यं
परमार्थभूतम् ॥ २३१ ॥
मिट्टीसे अलग घड़ेका रूप कोई भी नहीं दिखा सकता। इसलिये घड़ा तो मोहसे ही कल्पित है; वास्तवमें सत्य तो तत्त्वस्वरूपा मृत्तिका ही है।
सद्ब्रह्मकार्यं सकलं
सदैव
ततोऽन्यदस्ति ।
तन्मात्रमेतन्न.
अस्तीति यो वक्ति न तस्य मोहो विनिर्गतो
निद्रितवत्प्रजल्पः ॥ २३२ ॥
सत् ब्रह्मका कार्य यह सकल प्रपंच सत्स्वरूप ही है, क्योंकि यह सम्पूर्ण वही तो है, उससे भिन्न कुछ भी नहीं है। जो कहता है कि [ उससे पृथक् भी कुछ ] है, उसका मोह दूर नहीं हुआ; उसका यह कथन सोये हुए पुरुषके प्रलापके समान है।
ब्रह्मैवेदं विश्वमित्येव वाणी
श्रौती ब्रूतेऽथर्वनिष्ठा वरिष्ठा । तस्मादेतद् ब्रह्ममात्रं हि विश्वं
नाधिष्ठानाद्भिन्नतारोपितस्य
॥ २३३ ॥
'यह सम्पूर्ण विश्व ब्रह्म ही है'- ऐसा अति श्रेष्ठ अथर्व श्रुति कहती है । इसलिये यह विश्व ब्रह्ममात्र ही है, क्योंकि अधिष्ठानसे आरोपित वस्तुकी पृथक् सत्ता हुआ ही नहीं करती।