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सूक्ष्म शरीर
वागादिपञ्च श्रवणादिपञ्च
प्राणादिपञ्चाभ्रमुखानि पञ्च। बुद्ध्याद्यविद्यापि च कामकर्मणी
पुर्यष्टकं सूक्ष्मशरीरमाहुः॥१८॥ वागादि पाँच कर्मेन्द्रियाँ, श्रवणादि पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, प्राणादि पाँच प्राण, आकाशादि पाँच भूत, बुद्धि आदि अन्त:करण-चतुष्टय, अविद्या तथा काम और कर्म यह पुर्यष्टक अथवा सूक्ष्म शरीर कहलाता है। इदं शरीरं शृणु सूक्ष्मसंज्ञितं
लिङ्गं त्वपञ्चीकृतभूतसम्भवम्। सवासनं कर्मफलानुभावकं
स्वाज्ञानतोऽनादिरुपाधिरात्मनः ॥ ९९ ।। यह सूक्ष्म अथवा लिंगशरीर अपंचीकृत भूतोंसे उत्पन्न हुआ है; यह वासनायुक्त होकर कर्मफलोंका अनुभव करानेवाला है। और स्वस्वरूपका ज्ञान न होनेके कारण आत्माकी अनादि उपाधि है। स्वप्नो भवत्यस्य विभक्त्यवस्था
स्वमात्रशेषेण विभाति यत्र। स्वप्ने तु बुद्धिः स्वयमेव जाग्रत्
कालीननानाविधवासनाभिः । कादिभावं प्रतिपद्य राजते
यत्र स्वयंज्योतिरयं परात्मा॥१००॥ स्वप्न इसकी अभिव्यक्तिकी अवस्था है, जहाँ यह स्वयं ही बचा हुआ भासता है। स्वप्नमें, जहाँ यह स्वयंप्रकाश परात्मा शुद्ध चेतन ही [ भिन्नभिन्न पदार्थोंके रूपमें ] भासता है, बुद्धि जाग्रत्कालीन नाना प्रकारकी वासनाओंसे, कर्ता आदि भावोंको प्राप्त होकर स्वयं ही प्रतीत होने लगती है।