________________
दस इन्द्रियाँ
२७
बाह्येन्द्रियैः स्थूलपदार्थसेवां
स्त्रक्चन्दनस्त्र्यादिविचित्ररूपाम् । करोति जीवः स्वयमेतदात्मना
तस्मात्प्रशस्तिर्वपुषोऽस्य जागरे॥९१॥ इससे तादात्म्यको प्राप्त होकर ही जीव माला, चन्दन तथा स्त्री आदि नाना प्रकारके स्थूल पदार्थोंको बाह्येन्द्रियोंसे सेवन करता है, इसलिये जाग्रत्-अवस्थामें इस (स्थूल) देहकी प्रधानता है। सर्वोऽपि बाह्यसंसारः पुरुषस्य यदाश्रयः। विद्धि देहमिदं स्थूलं गृहवद्गृहमेधिनः ॥९२॥
जिसके आश्रयसे जीवको सम्पूर्ण बाह्य जगत् प्रतीत होता है, गृहस्थके घरके तुल्य उसे ही स्थूल देह जानो। स्थूलस्य सम्भवजरामरणानि धर्माः
स्थौल्यादयो बहुविधाः शिशुताद्यवस्थाः। वर्णाश्रमादिनियमा बहुधा यमाः स्युः
पूजावमानबहुमानमुखा विशेषाः॥१३॥ स्थूल देहके ही जन्म, जरा, मरण तथा स्थूलता आदि धर्म हैं; बालकपन आदि नाना प्रकारको अवस्थाएँ हैं; वर्णाश्रमादि अनेक प्रकारके नियम और यम हैं; तथा इसीकी पूजा, मान, अपमान आदि विशेषताएँ हैं।
दस इन्द्रियाँ बुद्धीन्द्रियाणि श्रवणं त्वगक्षि
घ्राणं च जिह्म विषयावबोधनात्। वाक्पाणिपादं गुदमप्युपस्थः
कर्मेन्द्रियाणि प्रवणेन कर्मसु॥१४॥ श्रवण, त्वचा, नेत्र, घ्राण और जिह्व ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, क्योंकि