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प्रश्न-विचार
[पृथ्वीमें गड़े हुए धनको प्राप्त करनेके लिये जैसे] प्रथम किसी विश्वसनीय पुरुषके कथनकी और फिर पृथिवीको खोदने, कंकड़पत्थर आदिको हटाने तथा [प्राप्त हुए धनको] स्वीकार करनेकी आवश्यकता होती है-कोरी बातोंसे वह बाहर नहीं निकलता, उसी प्रकार समस्त मायिक-प्रपंचसे शून्य निर्मल आत्मतत्त्व भी ब्रह्मवित् गुरुके उपदेश तथा उसके मनन और निदिध्यासनादिसे ही प्राप्त होता है, थोथी बातोंसे नहीं।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन भवबन्धविमुक्तये। स्वैरेव यत्नः कर्तव्यो रोगादाविव पण्डितैः॥१८॥
इसलिये रोग आदिके समान भव-बन्धकी निवृत्तिके लिये विद्वान्को अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर स्वयं ही प्रयत्न करना चाहिये।
प्रश्न-विचार यस्त्वयाद्य कृत: प्रश्नो वरीयाञ्छास्त्रविन्मतः । सूत्रप्रायो निगूढार्थो ज्ञातव्यश्च मुमुक्षुभिः॥६९॥
तूने आज जो प्रश्न किया है, शास्त्रज्ञ जन उसको बहुत श्रेष्ठ मानते हैं। वह प्राय: सूत्ररूप (संक्षिप्त) है, तो भी गम्भीर अर्थयुक्त और मुमुक्षुओंके जाननेयोग्य है।
शृणुष्वावहितो विद्वन्यन्मया समुदीर्यते। तदेतच्छ्रवणात्सद्यो भवबन्धाद्विमोक्ष्यसे ॥७०॥
हे विद्वन् ! जो मैं कहता हूँ, सावधान होकर सुन; उसको सुननेसे तू शीघ्र ही भवबन्धनसे छूट जायगा। मोक्षस्य हेतुः प्रथमो निगद्यते
वैराग्यमत्यन्तमनित्यवस्तुषु ततः शमश्चापि दमस्तितिक्षा
न्यासः प्रसक्ताखिलकर्मणां भृशम्॥७१॥