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विवेक-चूडामणि
सुभद्रा भी पतिके अनुरूप ही विदुषी और धर्मपरायणा पत्नी थीं। परंतु प्रायः प्रौढावस्था समाप्त होनेपर भी जब उन्हें कोई संतान न हुई तब पति-पत्नीने बड़ी श्रद्धा-भक्तिके साथ भगवान शंकरकी पुत्र-प्राप्तिके लिये कठिन तप:पूर्ण उपासना की। भगवान् आशुतोष ब्राह्मणदम्पतिकी उपासनासे प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उन्होंने उन्हें मनोवांछित वरदान दिया। भगवान् शंकरके आशीर्वादसे शुभ मुहूर्तमें माँ सुभद्राके गर्भसे एक दिव्य कान्तिमान् पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ
और उसका नाम आशुतोष शंकरके नामपर ही शंकर रख दिया गया। ___ बालक शंकरके रूपमें कोई महान् विभूति अवतरित हुई है, इसका प्रमाण शंकरके बचपनसे ही मिलने लगा। एक वर्षको अवस्था होते-होते बालक शंकर अपनी मातृभाषामें अपने भाव प्रकट करने लगे और दो वर्षकी अवस्थामें मातासे पुराणादिकी कथाएँ सुनकर कण्ठस्थ करने लगे। उनके पिता तीन वर्षकी अवस्थामें उनका चूडाकर्म करके दिवंगत हो गये। पाँचवें वर्ष में यज्ञोपवीत कर उन्हें गुरुके घर पढ़नेके लिये भेजा गया और केवल ८ वर्षकी अवस्थामें ही वे वेद-वेदान्त और वेदांगोंका पूर्ण अध्ययन करके घर वापस आ गये। उनकी असाधारण प्रतिभा देखकर उनके गुरुजन दंग रह गये।
विद्याध्ययन समाप्तकर शंकरने संन्यास लेना चाहा, परंतु जब उन्होंने मातासे आज्ञा माँगी तो उन्होंने नाहीं कर दी। शंकर माताके बड़े भक्त थे, माताको कष्ट देकर संन्यास लेना नहीं चाहते थे। एक दिन माताके साथ वे नदीमें स्नान करने गये। वहाँ शंकरको मगरने पकड़ लिया। इस प्रकार पुत्रको संकटमें देख माताके होश उड़ गये। वह बेचैन होकर हाहाकार मचाने लगी। शंकरने मातासे कहा-'मुझे संन्यास लेनेकी आज्ञा दे दो तो मगर मुझे छोड़ देगा। माताने तुरन्त आज्ञा दे दी और मगरने शंकरको छोड़ दिया। इस तरह माताकी आज्ञा प्राप्तकर वे घरसे निकल पड़े। जाते समय माताके इच्छानुसार यह वचन देते गये कि तुम्हारी मृत्युके समय मैं घरपर उपस्थित रहूँगा।
घरसे चलकर शंकर नर्मदातटपर आये और वहाँ स्वामी गोविन्द भगवत्पादसे दीक्षा ली। गुरुने उनका नाम 'भगवत्पूज्यपादाचार्य' रखा। उन्होंने गुरूपदिष्ट मार्गसे साधना प्रारम्भ कर दी और अल्पकालमें ही बहुत बड़े योगसिद्ध महात्मा हो गये। उनकी सिद्धिसे प्रसन्न होकर गुरुने काशी जाकर वेदान्त