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बोधोपलब्धि
बोधोपलब्धि
गुरुवचनाच्छ्रतिप्रमाणात् सतत्त्वमात्मयुक्त्या समाहितात्मा क्वचिदचलाकृतिरात्मनिष्ठितोऽभूत् ॥ ४८० ॥
इस प्रकार गुरुके श्रुति प्रमाणयुक्त वचन और अपनी युक्तियोंद्वारा परमात्मतत्त्वको जानकर चित्त और इन्द्रियोंके शान्त हो जानेसे कोई एक शिष्य निश्चल वृत्तिसे आत्मस्वरूपमें स्थित हो गया । कञ्चित्कालं समाधाय परे ब्रह्मणि मानसम् । परमानन्दादिदं वचनमब्रवीत् ॥ ४८१ ॥
व्युत्थाय
और कुछ देरतक परब्रह्ममें चित्तको समाहितकर फिर उस परमानन्दमयी स्थितिसे उठकर ये वचन बोला।
बुद्धिर्विनष्टा गलिता प्रवृत्ति
ब्रह्मात्मनोरेकतयाधिगत्या
इति
परमवगम्य
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प्रशमितकरणः
इदं न जानेऽप्यनिदं न जाने
किं वा कियद्वा सुखमस्त्यपारम् ॥ ४८२ ॥ अहो ! ब्रह्म और आत्माकी एकताका ज्ञान होनेपर मेरी बुद्धि तो एकदम नष्ट हो गयी, विषयोंमें मेरी सारी प्रवृत्ति दूर हो गयी, मुझे न इदं (प्रत्यक्ष वस्तु) का ज्ञान है और न अनिदं ( अप्रत्यक्ष ) का और न मैं यही जानता हूँ कि वह अपार आनन्द कैसा और कितना है। वाचा वक्तुमशक्यमेव मनसा मन्तुं न वा शक्यते स्वानन्दामृतपूरपूरितपरब्रह्माम्बुधेर्वैभवम् अम्भोराशिविशीर्णवार्षिकशिलाभावं भजन्मे मनो यस्यांशांशलवे विलीनमधुनानन्दात्मना निर्वृतम् ॥ ४८३ ॥ जलराशि (समुद्र) - में पड़कर गले हुए वर्षाकालिक ओलोंकी अवस्थाको प्राप्त हुआ मेरा मन जिस आनन्दामृतसमुद्रके एक अंशके भी
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