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________________ ७६ तैत्तिरीयोपनिपद् [ चल्ली १ विरोधादेव च विद्या मोक्षं प्रति ] है और विरोध होनेके कारण ही ज्ञान मोक्षके प्रति कर्मकी अपेक्षा नहीं न कर्माण्यपेक्षते । रखता। स्वात्मलामे तु पूर्वोपचित- हाँ, आत्मलाभमें पूर्वसश्चित प्रतिवन्धापनयद्वारेण विद्याहेतुत्वं पापरूप प्रतिबन्धका निवृत्द्विारा नित्यकर्म ज्ञानप्राप्तिके हेतु अवश्य प्रतिपद्यन्ते कर्माणि नित्यानीति । होते हैं । इसीलिये इस प्रकरणमें कर्मोका उल्लेख किया गया है-यह अत एवास्मिन्प्रकरण उपन्य हम पहले ही कह चुके हैं । इस स्तानि कर्माणीत्यवोचाम । एवं प्रकार भी कर्मका विधान करनेवाली चाविरोधः कर्मविधिश्रुतीनाम् श्रुतियोंका [विद्याविधायिनी श्रुतियों से] विरोध नहीं है । अतः यह अतः केवलाया एव विद्यायाः सिद्ध हुआ कि केवल विद्यासे ही . परं श्रेय इति सिद्धम् । परमश्रेयकी प्राप्ति होती है । एवं ताश्रमान्तरानुपपत्तिः। पूर्व०-यदि ऐसी बात है तब तो [ गृहस्थाश्रमके सिवा ] अन्य कर्मनिमित्तत्वाद्विद्योत्पत्तेः। गा- आश्रमोंका होना भी उपपन्न नहीं है, क्योंकि विद्याकी उत्पत्ति तो हस्थ्ये च विहितानि कर्माणी-कर्मके निमित्तसे होती है और कर्मों | का विधान केवल गृहस्थके ही लिये त्यैकाश्रम्यमेव । अतश्च यावजी- | किया गया है। अतः इससे एकाश्रमत्व की ही सिद्धि होती है । और इसलिये वादिश्रुतयोऽनुकूलतराः। 'यावज्जोवन अग्निहोत्र करें' इत्यादि श्रुतियाँ और भी अनुकूल ठहरती हैं । न; कर्मानेकत्वात् । न ह्य- सिद्धान्ती-ऐसी बात नहीं है, शानसाधकानि मिहोत्रादीन्येव क- क्योंकि कर्म तो अनेक हैं। केवल कर्माणि । | अग्निहोत्र आदि हो कर्म नहीं हैं। सप ब्रह्मचर्य, तप, सत्यभाषण, शम, तपः सत्यवदनं शमो दमोऽहिंसे- दम और अहिंसा आदि अन्य कर्म
SR No.034106
Book TitleTaittiriyo Pnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGeeta Press
PublisherGeeta Press
Publication Year1937
Total Pages255
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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